हेलो दोस्तों तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा से तो आप जरूर परिचित होंगे। वर्तमान समय में दलाई लामा दुनिया में शांति के प्रतीक के रूप में देखे जाते हैं। दलाई लामा तिब्बत के सर्वोच्च नेता और सर्वोच्च धर्मगुरु भी है लेकिन वर्षों से वह भारत में रह रहे हैं, तो क्या कभी आपने जानने की कोशिश की है कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि इतने बड़े नेता और धर्मगुरु दलाई लामा को अपना देश छोड़कर भागना पड़ा? और दोस्तों क्या आप दलाई लामा का असल नाम जानते हैं? अगर आप सोच रहे हैं कि उनका नाम दलाई लामा है तो आप गलत है, क्योंकि उनका असल नाम कुछ और है। तो दोस्तों अगर आप दलाई लामा की तिब्बत से भाग कर भारत आने की वजह जानना चाहते हैं साथ दलाई लामा के असल नाम के साथ-साथ इनसे जुड़ी कुछ अनसुनी और हैरान करने वाली बातें जानना चाहते हैं तो इस पेज में हमारे साथ आखिर तक बने रहें
क्या है दलाई लामा का असली नाम ?
दोस्तों आप और दुनिया जिसे दलाई लामा के नाम से जानती है असल में दलाई लामा उनका नाम नहीं बल्कि उनके पद का नाम है आप इसे इस तरह से समझे कि जिस तरह भारत में प्रधानमंत्री राष्ट्रपति इत्यादि का पद होता है उसी तरीके से तिब्बत में तिब्बती बौद्ध धर्म के एक गुप्त युग के सर्वोच्च नेता के लिए दलाई लामा का पद होता है। अब जिस तरह से भारत के चौधरी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं उसी तरीके से तिब्बती बौद्ध धर्म के जिलों गुट के चौदहवें दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो है जो वर्षों से भारत में शरणार्थी के रूप में रह रहे हैं। अब यहां पर यह बात स्पष्ट हो गई है कि दलाई लामा असल में किसी व्यक्ति विशेष का नाम नहीं है बल्कि एक पद का नाम है अब इस पर जो व्यक्ति वर्तमान समय में विराजमान है उनका नाम तेनजिन ग्यात्सो है जो कि 14वें दलाई लामा है। तो चलिए अब आपको 14वें दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो जिंदगी से जी कुछ अनछुए पहलुओं से रूबरू करवाते हैं।
दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो का जन्म कब और कहां?
दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो का जन्म छह जुलाई 1935 को चीन के किंघाई प्रॉब्लम्स के टास्टर नाम के एक गांव में हुआ था जिस परिवार में इनका जन्म हुआ वह पैसे से एक किसान का परिवार था। तेनजिन ग्यात्सो के चौदहवें दलाई लामा बनने की प्रक्रिया आपको थोड़ी रोचक लग सकती है। आपको यह पता है कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है यहां प्रधानमंत्री का चुनाव लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत किया जाता है लेकिन दलाई लामा के पद पर व्यक्ति की नियुक्ति की प्रक्रिया बेहद ही जटिल और बहुत ही कठिन होती है। दरअसल बोद्ध धर्म की मान्यताओं के अनुसार जो व्यक्ति दलाई लामा के पद पर नियुक्त होता है। असल में उसका पुनर्जन्म होता है वह व्यक्ति पिछले जन्म में भी दलाई लामा ही होता है इसीलिए जमीन का पुनर्जन्म होता है तो वह धर्म के धर्मगुरुओं को अगले दलाई लामा को चुनने के लिए संबंधित सपने और निशानियां दिखने लगती हैं जिसके आधार पर सुदामा की खोज शुरू की जाती है और फिर काफ़ी लंबी और कठिन प्रक्रिया के बाद किसी को दलाई लामा बनाया जाता है।
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दलाई लामा कैसे चुने जाते हैं?
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि जब तेनजिन ग्यात्सो सिर्फ दो साल के थे तभी बहुत धर्म के धर्मगुरु ने यह पहचान लिया था कि यही इनके 14वें दलाई लामा हो सकते हैं कोई बच्चा असल में दलाई लामा का वंशज है या नहीं इस बात का पता लगाने के लिए पूर्व के दलाई लामा से जुड़ी वस्तुएं बच्चे को दिखाई जाती हैं अगर बच्चा उन चीजों को ठीक-ठीक पहचान लेता है तो यह माना जाता है। यही बच्चा उनका दलाई लामा हो सकता है ऐसे ही तय जत्थों के साथ भी हुआ था जब शुरुआती जांच के बाद कंफर्म हो गया कि तेनजिन ग्यात्सो बोद्ध धर्म के अगले दलाई लामा हो सकते हैं। तो वह धर्म के तत्कालीन धर्मगुरुओं ने उन्हें अपने साथ ले लिया ताकि बोद्ध धर्म की शिक्षाएं दी जा सके और आगे चलकर वह धर्म का नेतृत्व कर सके अब इस तरह वर्तमान दलाई लामा सिर्फ दो साल के थे तभी उन्हें वह धर्मगुरुओं ने अपने साथ लिया और 5 साल घुमर भी 22 फरवरी 1940 को उन्हें दलाई लामा घोषित कर दिया गया।
हालांकि तब उनके पूरे तौर पर दलाई लामा की प्रक्रिया की पहली सीढ़ी थी 1968 में यह आखिरकार सभी परीक्षाओं और शर्तों पर खरे उतरते हुए पूरे तरीके से दलाई लामा बन गई अब तक आपने तेनजिन ग्यात्सो के शुरूआती जीवन और इनके दलाई लामा बनने के सफर के बारे में जान लिया है।
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चीन तिब्बत को अपना हिस्सा क्यों बताता है?
चलिए अब बात करते हैं आखिर में उभरा कर क्यों लंबे समय तक चीन तिब्बत को अपना हिस्सा बताता रहा है और तिब्बत पर चीन का पूरा नियंत्रण है लेकिन में दलाई लामा ने तिब्बत को स्वतंत्र घोषित कर दिया था इस तरह अगले 40 साल तक स्वतंत्र हैं लेकिन जब दलाई लामा की मृत्यु हो गई और में दलाई लामा को चुनने की प्रक्रिया जारी थी इसी दौरान चीन ने एक बार फिर पर
हमला कर दिया इस हमले में बुरी तरह से हार चीन ने एक बार फिर से नियंत्रण हासिल किया। चीन के जुल्मों सितम पर वार्ता हुआ था। इधर 14वें दलाई लामा की नियुक्ति के बाद चीन का विरोध बढ़ता ही जा रहा था। इस कारण 14वें दलाई लामा चीन की नजर में खटकने लगे थे। अब लोगों को डर था कि हर हाल में चीन 14वें दलाई लामा को या तो कट कर सकता है या फिर उन्हें मार सकता है। इन्हीं सब आशंकाओं के बीच रातों रात में दलाई लामा चुपचाप अपने दल के साथ रात के घने अंधेरे में 17मार्च 1968 को तिब्बत की राजधानी ल्हासा से भारत की ओर चल पड़े।
दलाई लामा की भारत यात्रा
चीन की नजरों से बचने के लिए दलाई लामा अपने समूह के साथ पैदल ही निकले थे। यह सब वहां से निकल तो गए लेकिन अगले कुछ दिनों तक इन लोगों का कोई अता-पता नहीं चला। 10 दिन से ज्यादा बीत गए लेकिन अब तक यह लोग ना तो किसी दूसरे देश में पहुंचे थे और न ही किसी के पास इन लोगों के बारे में कोई जानकारी थी। ऐसे में लोगों ने मान लिया कि दलाई लामा को चीन ने खोज कर मार डाला है। या फिर सेट कर लिया है।
लेकिन दुनिया उस समय हैरान रह गई जब 15 दिन दलाई लामा अपने पूरे समूह के साथ 31 मार्च 1968 को भारत की धरती पर चलने के बाद में पता चला कि यह पूरा समूह चीन की नजरों से बचने के लिए सिर्फ रात के अंधेरे में सफर किया करता था। यह लोग हिमालय पहाड़ को पार करते हुए कई जंगलों और विरानों से होते हुए भारत पहुंचने में कामयाब हुए थे। जैसे ही दलाई लामा के भारत पहुंचने की खबर चीन को लगी चीन बौखला उठा और वह भारत पर दबाव बनाने लगा कि तुरंत दलाई लामा को चीन के हवाले करें लेकिन भारत ने ऐसा करने से इनकार कर दिया। भारत आकर दलाई लामा ने 28 अप्रैल 1962 को तिब्बत को फिर से स्वतंत्र घोषित करते हुए सेंट्रल पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन की घोषणा कर दी और खुद इसकी प्रमुख बन गई भारत आने के बाद ही दलाई लामा यहीं से धर्म का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं।
भारत और चीन के बीच रिश्ते में खटास आने की यही बहुत बड़ी वजह है। भारत द्वारा दलाई लामा को शरण देना भी है। हालांकि चीन के दबाव के बावजूद भारत ने चीन के सामने कभी घुटने नहीं टेके हैं। भारत में रहते हुए दलाई लामा ने तिब्बत में शांति स्थापित करने के में काम किया है। यही वजह रही कि दलाई लामा को 1989 में शांति का नोबेल प्राइस भी दिया गया है। दोस्तों घायलों को बाहर निकालकर और चीन के हवाले नहीं करके सही किया या गलत आप कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।
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